मायावी संसद से निकलती ‘माया’

बाबा विजयेन्द्र 
————————–
इस मायावी संसद को मायावती अबतक क्यों नहीं समझ पायी थी . गांधीजी की बात को दुहराना यहाँ उचित नहीं जिसमें गांधी ने संसद की निरर्थकता पर प्रहार किया था . बाद में गांधी अपने ही उस बयान पर प्रायश्चित भी किया और हिन्द-स्वराज के दूसरे संस्करण में संसद के प्रति अपनी दृष्टि को संसोधित किया . वह संसोधन ‘बाँझ और वेश्या’ को सम्मान देने के लिए किया गया था या फिर संसद की उपादेयता उन्हें नजर आ गयी थी, यह तो गांधी के शोधार्थी ही बता पाएंगे .
जिस गांधी को मायावती ने हरिजन के सवाल पर ‘शैतान की औलाद’ तक कह डाला था, शायद आज उसी गांधी की संसद के प्रति दृष्टि माया को समझ में आ गयी . यह मानसून-सत्र माया के लिए अंतिम सत्र साबित हुआ .आज उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफ़ा दे दिया . उन्होंने उपसभापति पर अपनी नाराजगी जताती हुई बोली कि जिस संसद में दलित-उत्पीड़न पर बोलने तक नहीं दिया जा रहा हो उस सदन में रहकर वह क्या करेगी . माया एकदम तमतमाती हुयी सदन से बाहर निकली और इस्तीफ़ा की घोषणा तक कर डाली . मायावती सहारनपुर और ऊना और दुलिना के सवाल पर बोलना चाह रही थी.
माया, देश  के राष्ट्रपति ‘राम’ का अभिभाषण शायद ही अब सुन पायेगी. ‘राम’ तो माया के विकल्प की बड़ी संघ-साधना ही है. भाजपा के ‘राम’ माया की तमाम सबरियों के बेर को निगल जाने की स्थिति में हैं . रामनाथ के बहाने भाजपा ने माया को अनाथ बना दिया. दलितों की अकेली दीनानाथ अब माया रही नहीं . पिछले चुनाव के हस्र ने माया के जीवन में हाहाकार मचा दिया . मायावती लगातार सिकुड़ती रही. हार जैसी कोढ़ में सीबीआई जैसी खाज से माया तबाह तो हो चुकी है. अपने खोये जनाधार को प्राप्त करना कोई बुरी बात भी नहीं है . ऐसा तो सभी पार्टियाँ कर रही हैं. सेंधमारी भी तो चोरी का ही एक प्रकार है. मत- चोरी भी तो एक चोरी ही है . भाजपा इस चौर्य-कर्म में सबसे अव्वल ही रही है . यही मत-चोरी वर्तमान राजनीति की नियति बन चुकी है . फिर भी मायावती के इस्तीफे को अतिशय में देखना एक अराजनीतिक प्रकल्प और प्रलाप है.
माया भारतीय राजनीति की एक सच है जिस सच को कासीराम ने कर दिखाया था . वोट हमारा-राज तुम्हारा ,नहीं चलेगा,नहीं चलेगा के नारे को कासीराम ने जमीन पर उतारा और मायावती ने उसे विस्तार दिया . मायावती जब उभार पर थी तब भाजपा अछूत ही बनी हुयी थी. बहुत दंगा फसाद के बाद भी भाजपा दो से सौ के करीब ही पहुँच पायी. इसी मायावती ने भाजपा के लिए दलितों दरबाजा खोला.मायावती तब भाजपा की दुलारी बहन बनी हुयी थी.माया को भी यह पता था कि भाजपा किसी को बहुत दिनों तक दुलार नहीं करती बल्कि स्वयं ही अनंत दुलार की और बढ़ जाती है . काश माया भाजपा के नारद-मोह को पहले ही समझ पाती .
मंगलवार को माया को सदन में नहीं बोलने दिया गया इसका दोषी स्वयं माया भी कम नहीं है .  दलितों की झोपड़ी में वक्त रहते कोई किरण पहुंचा नहीं पायी . इस क्रम स्वयं की दीनता दूर करती रह गयी . झोपड़ी के बगल में देवी माया ही जगमगाती रही .सामंतों और सवर्णों से लड़ते लड़ते स्वयं सवर्ण हो गयी . वही सामन्ती चाल रही और वही सवर्ण चेहरा . माया को किसी ने मारा ने बल्कि स्वयं अपने ही अंतर्विरोधों का शिकार हो गयी . भाजपा कभी किसी की तबाही का कारण नहीं बनती. विसंगतियों और सत्ता वियोग की धीमी आंच पर पकने छोड़ देती है. माया पकते पकते राख हो गयी. पूरी सत्ता ख़ाक में मिल गयी.
वर्तमान की मीरा और राम के बीच माया वंचित समाज की त्याज्य तत्व बनकर रह गयी .राम के खिलाफ माया का यह विद्रोह समझ के करीब है .
जब जागो तभी सबेरा. पर इस अभिनय से बात बनेगी नहीं . माया को राजनीति में जिन्दा रहने के लिए अपने भीतर की महारानी को मरना पड़ेगा .अपने सामन्ती मिजाज को बदलना होगा .फिर से भरोसा जीतने के नए सवाल सुलगाने होंगें . माया का कोई नया तरीका इस्तीफ़ा से ज्यादा ही कारगर साबित होगा . इस्तीफ़ा अगर सत्ता प्राप्ति का औजार केवल है तो वह एक नया दुर्भाग्य ही होगा .
उधर दलितों के सवाल पर मरने मिटने वाली नेतृत्व की नयी पौध खादी हो चुकी है . जिग्नेश मेवानी हो चन्द्र शेखर रावण सनातन सवालों को लेकर सूली पर चढ़ने के लिए तैयार है . अगर जिग्नेश और चंद्रशेखर को अपना समर्थन दी होती तो बात कुछ और होती . माय अपने मोह के कारण उस ऐतिहासिक फैसले से वंचित रह गयी . वंचित राजनीति को नियतिवाद से मुक्त नहीं कर सकी .
माया अब मार्गदर्शिका ही बने तो बेहतर होगा . दलित भागीदारी केवल चुनावी अवधारणा नहीं है . इसे संगठन के स्तर पर भी करने की जरुरत है . बहुजन नेतृत्व को अपने बहुजन समाज में जगह देनी होगी . यही माया के लिए बेहतर विकल्प होगा . कासीराम के सपनों को साकार करने के लिए अभी युवा कन्धों की जरुरत है . इस जरुरत को पूरा करना माया की बड़ी जिम्मेवारी है .
परिस्थितिया नयी हैं तो मनुवाद से मुकाबले नए औजार भी गढ़ने होंगें . माया इस मामले में पहले से ही डफर साबित हुयी हैं . माया बहुजन को संगठित तो करना चाहती है पर शिक्षित नहीं करना चाहती . ज्ञानसत्ता की सनातन दावेदारी को चुनौती केवल इस्तीफ़ा से नहीं दी जा सकती है . माया ने सदन में नयन चमकाया . उम्मीद है कि आगे सत्ता की कोई ठगनी साबित नहीं होगी, बल्कि महाकाली की तरह यथास्थितिवाद को रौद्र रूप भी दिखायेगी . देखना होगा कि आगे की राजनीति कितनी मायावी होती है और उस मायावी राजनीति में माया क्या गुल खिलाती हैं .

No comments:

Post a Comment

INSTAGRAM FEED

@soratemplates