बेवफा नीतीश के लिए भाजपा की इतनी बेचैनी क्यों ?

 बाबा विजयेंद्र


नीतीश कुमार ने राजद को चार दिन मौका दिया है. चार दिन की यह चांदनी बरक़रार रहेगी या फिर गठबंधन के लिए अंधेरी रात साबित होगी, इस विषय पर राजनीतिक पंडितों का विश्लेषण जारी है. कयास तो कयास है. पर नीतीश कुमार आसानी से महागठबंधन को मरने नहीं देंगें. अगर इन्हें मारने की भीतरी इच्छा भी होगी तो नीतीश कुमार राजद को अपने ही अंतर्विरोधों का शिकार होने देंगे . सियासत में शहीद हो जाने का मौका देना भी एक राजनीतिक भूल साबित होती है. तेजस्वी यादव के भविष्य का क्या होगा, इसका निर्धारण नीतीश स्वयं नहीं करना चाहेंगे. अपने पोलिटिकल-एक्टिविज्म को जुडिसियल-एक्टिविज्म में कन्वर्ट कर नीतीश निश्चिन्त होना चाहते हैं . कानून की दबिश इतनी होगी कि तेजस्वी को स्वयं इस्तीफ़ा देना पड़ेगा .शायद इस प्रक्रिया में आने वाले दिनों में राजद के प्रति नीतीश की सहानुभूति भी शिखर पर होगी . तेजस्वी की सियासी मौत का ठीकरा भाजपा पर फोड़ना, नीतीश की एक राजनीतिक चाल है.नीतीश की राजनीतिक-अभियांत्रिकी को समझना अभी आसान नहीं
इस गेम में सबसे लूजर कोई होगी तो वह होगी भाजपा . तेजस्वी-मुक्त सरकार हो भी जायेगी तो भाजपा को क्या मिलना है. यह तो नीतीश के खाते में जमा होगा . भाजपा निल बटे सन्नाटा की स्थिति में होगी. भाजपा नीतीश को महानायक बना दे रही है यह कह कर कि नीतीश बेदाग़ सरकार चलाने के बेहतर नेता हैं. यही तो नीतीश भी चाहते हैं कि भाजपा इन्हें सुशासन बाबू घोषित करे. चालाक नीतीश-सरकार अपनी तमाम विफलताओं को तेजस्वी के बहाने ढक लेना चाहती है . नीतीश का फैसला जो भी होगा पर हारना भाजपा को ही है. भाजपा भूल जाती है कि आज की राजनीति मुद्दा-आधारित नहीं हो सकती है. यह मुद्दा-आधारित राजनीति का अवसान-काल है. भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है. पूरे देश में भाजपा की धमक है. दुर्भाग्य है बिहार-भाजपा का कि वह चारा-खोर हो रही है . वैसे लालू के सिबाय भी भाजपा के पास बहुत चारा है .चारा-चोरी और चारा-खोरी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं .नरेंद्र मोदी जैसे भाजपा के पास दबंग प्रधानमंत्री हैं . इस अभिनव सरकार के युगांतकारी फैसले हैं जिन फैसलों को जन-जन तक पहुँचाने की जरुरत थी जो बिहार की भाजपा कर नहीं पा रही है .यह मोदी का मोदी के साथ घोर अन्याय है . सुशील मोदी यह साबित कर दे रहे हैं कि केंद्र सरकार निठल्ली और निकम्मी है. अभी जरुरत थी जूनियर मोदी सीनियर मोदी के जनापेक्षी फैसलों को 1919 के परिणामों के सहायक तत्व बनाने की. पर सुशील मोदी को तो अपना ही खेल खेलना है. सुशील मोदी नीतीश सरकार के लिए सुविधा प्रदान कर दे रहे हैं. यह नीतीश के लिए सुखद है कि केंद्र सरकार की उपलब्धियों की बिहार में कोई चर्चा ही नहीं है. नीतीश सरकार भाजपा को इसी प्रकार के कार्यों में उलझाये रखेगी.
भाजपा सेज सजाये बैठी है. नीतीश के एकतरफा प्यार में मरी जा रही है. भाजपा नीतीश की पुरानी याद में रो-रोकर आंसुओं से टब भर देती है और नीतीश आते हैं और स्नान कर फिर निकल जाते हैं. नीतीश भाजपा की सेज को सूली कहते हैं.और नीतीश भाजपा को धोखा भी दे चुके हैं. फिर बेवफा नीतीश के लिए भाजपा की इतनी बेचैनी क्यों ? नीतीश के नाम का सिंदूर क्यों चाहिए. भाजपा तो सदा सुहागन है. इनके दरबार में लोग आयें, इनसे लिपटें तो बात अच्छी भी लगती है. पर भाजपा का नीतीश के प्रति लटबौरा होना एक छूछ-दुलार नहीं तो और क्या है? भाजपा को बिहार की ईमान-पसंद आवाम पर अगर इतना ही भरोसा है तो भाजपा को चुनाव में उतरना चाहिए और इंतज़ार करना चाहिए. भाजपा को नीतीश और लालू को एक साथ उखाड़ फेकने की हिम्मत दिखानी चाहिए. सत्ता के लिए फिर तेजस्वी की बलि क्यों ? बिहार के ईमान पसंद लोगों की परीक्षा भी तो होनी है. इस परीक्षा के परिणाम भाजपा को स्वीकार करने होंगे .

फिलहाल राजद को बाबा-बर्फानी ने थोड़ी राहत दी है .आतंकियों ने गुजरात के आस्थावान लोगों की हत्या कर दी है . मोदी के साथ-साथ पूरा देश आहत है. वैसे कही के भी शिवभक्त होते तो भी हम उतना ही रोते. हमारे मठी-मीडिया के लोग शिवभक्तों को गुजराती बनाने में लगे हैं. बाबा बर्फानी की असीम कृपा के कारण राजद राहत में है. कथित ‘जंगलराज’ में लगी आग को बिहार की बारिश बुझा दे रही है. चारो ओर बिजलियाँ गिर रही हैं. गठबंधन की पार्टियाँ और बिहार की पब्लिक सब झुलस रही हैं. इस बीच भाजपा धुन्धियाते रहने को अभिशप्त है .

No comments:

Post a Comment

INSTAGRAM FEED

@soratemplates