समानता के नाम पर किया जा रहा है स्त्री का शीलहरण

सीमा तिवारी
स्त्री सशक्तता के बहाने भी तो स्त्री देह ही चर्चा का विषय हैं। आज समानता के नाम और छल के पीछे जिस तरह से स्त्री का शीलहरण किया जा रहा है, वह क्या है?
इन्द्र अगर अहिल्या के पास छल से जाकर उसका शीलभंग करने का अपराधी है, तब फिर यह भी एक प्रश्न है कि अहिल्या को ही भ्रमित करके इन्द्र के पास छले जाने के लिए भेज देने में क्या किसी का दोष नहीं है? और अब क्या अहिल्या का शील-भंग नहीं हो रहा? चाहे इन्द्र अहिल्या के पास जाए या अहिल्या इन्द्र के पास चली तो अहिल्या ही जाती है....!!
आज आधुनिकता और समानता के नाम पर अहिल्या को स्वयं ही छले जाने का आभास नहीं रहा और शायद इसी का परिणाम है कि अब हर अहिल्या पत्थर ही होती जा रही हैं । स्त्री के
आज स्त्री यदि ताजा खबर बन गयी है तो इसमें कहीं न कहीं उसका स्वयं का भी योगदान है। उसने स्वयं ही अपने जीवन को एक अनजाने सफर में तब्दील कर लिया है। स्त्री को यह सत्य अपने जीवन में स्वीकारना होगा कि ‘स्त्री होना ही पूर्णता है’।
‘पूर्ण’ की समानता मात्र ‘पूर्ण’ से ही हो सकती है, उसे किसी अन्य से समानता की नकल की आवश्यकता नहीं.... और यदि यह प्रयास किया जाए तो वह उस ‘पूर्ण सत्य’ की महत्ता को कम करने जैसा ही होगा।
पत्थर होते जाने का इससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं है जो कि आये दिन समाचार पत्रों और समाचार चैनलों की ताजा खबर के माध्यम से जानने को मिल रहा हैं । आज देह-व्यापार का संचालन करने वाली संचालिका भी तो पत्थर हो चुकी स्त्री ही है और समाज का दुर्भाग्य है कि अब कोई राम अहिल्या को तारने नहीं आने वाले क्योंकि अब अहिल्या को ही अपने छले जाने का भान नहीं रहा या यह भी कहा जा सकता है कि शायद उसे अपने छले जाने का कोई पश्चाताप नहीं रहा।

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