ये मेरी खता नहीं है कि  मैं तेरा बीमार हूं,
मुझे गुनहगार साबित न कर, मेरा ईलाजकर।

तुझे पता ही नही है कि तकलीफ क्या है,
नासूर मुझे फटने से रोक रहा है ज़िन्दगी दिखाकर।

कुछ दिन पहले मुझे मार दिया ये बताकर
चार दिन बाद तू मरेगा, दो दिन गुजारकर।

लगता सभी को यही है कि दिल मे दर्द था
गमेदौरा पीठ पीछे बैठ गया था एक हाथ  रसद रोककर।

मै  यूंही तकलीफ में रहता हूं एसा भी नही है,
मेरी बिमारी के बहाने तू आती थी मिलने, ज़रा यादकर।

जब तुम्हे ये पता न चले कि तुम नफे मे हो या नुकसान में,
एसा कोई साथी सफर में मिले, बस उसी के साथ चल ज़िन्दगी गुज़ारकर।

उसके पास समय ही नहीं था, एक बहाना छोड़कर,
मुझे फुर्सत तब मिली, जब वो जा चुका था इन्तज़ार छोड़कर

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रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
हमने ख़ुश होके भँवर बाँध लिये पावों में

उन को भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश
बूँद तक बो न सके जो कभी सहराओं में

ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी थाके-हारे हो
धूप की तुम तो मिलावट न करो चाओं में

जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बट न जाये तेरा बीमार मसीहाओं में

हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का
अब तो महंगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में

जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है
उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में

वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा
मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में

हम को आपस में मुहब्बत नहीं करने देते
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में

मुझसे करते हैं “क़तील” इस लिये कुछ लोग हसद
क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में

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‘वस्ल की शब गुजर ना जाये कहीं, तेरा बीमार मर ना जाये कहीं.’


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तेरे इन्कार में भी जब  कभी,  इकरार दिखता  है |
       तभी आशिक मुहब्बत का,तेरा बीमार दिखता है ||

                        मैं तो इंसान हूँ इल्जाम कोई, लग भी सकता है|
                        फरिश्ता भी तुम्हे देखे तो, वह बेजार दिखता है ||

        हकीकत में बदलना ख्वाब को,मुश्किल तो है लेकिन |
         इन्हीं  ख्वाबों  में  ही अक्सर, मेरा संसार  दिखता है||

                         तेरी  मुस्कान के  पीछे, तेरी नजरों की वह  थिरकन |
                         शरारत हो भले मुझको, बेतकल्लुफ प्यार दिखता है||

       जिसे मैं प्यार की मंजिल, समझ  बैठा  हूँ  भूले से |
       उसी के हाथ मेरे कत्ल का, अब आसार दिखता है ||

                             अदाएं इश्क की जब जब, रूबरूं होती हैं नजरों से |
                              इबादत के लिए कोई रूप, ही साकार दिख जाता ||

मेरी गजलों को जो "जिज्ञासु"तुमने स्वर दिया होता |
मेरा हर शेर ही मेरे प्यार का, इक किरदार बन जाता ||

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