भा गया यह 'भगोड़ा '


Baba Vijayendra

दो दिन पहले अरविंद केजरीवाल से मेरी निजी मुलाकात हुई।अभी अरविंद केजरीवाल 'अभूतपूर्व' पूर्व मुख्यमंत्री हो गए हैं। अरविंद की महत्वाकांक्षा जब शैशव काल में थी तब बैठकों में गाहे बगाहे उनसे मुलाकात हो जाती थी। अरविंद निरंतर अपने मिशन की ओर बढ़ते रहे । इनका कारवां और कुनबा इतना ग्लैमरस होगा यह उम्मीद मुझे क्या उनके समर्थक को भी नहीं थी। अरविंद ने मुझ साथी कुछ बिगाड़ा नहीं बावजूद बेमतलब का मैं उनका विरोध करता रहा। यद्यपि मुझ जैसों का टुटपुंजिया विरोध अरविंद के लिए कोई मायने नहीं रखता था। इसलिए उन्होंने मुझे कभी भाव दिया नहीं और मैं भी भाव खाया नहीं। कई मुद्दों पर इनका धूर विरोधी रहा हूँ। लगातार अरविंद के विरोध में लिखता रहा हूँ। शायद यह अभियान आगे भी जारी रहेगा। यह विरोध निज हित में है या राष्ट्र हित में है, निज का पड़ताल जारी है।
इन दिनों मैं केजरीवाल के प्रति करुणा भाव से भर गया हूँ।उनके कातर स्वर और करुणा से भरी आँखों को देखा। सादगी और सदाशयता के अतिरेक और महानता के उनके तमाम व्यवहार के पीछे मैं अब अरविंद के लिए 'कथित ' शब्द लगाना भी छोड़ दिया हूँ।

हमारे समाज में हरिश्चंद्र के नाटक होते रहे हैं । रामलीला और रासलीला हमें सिखाती रही। सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित करती रही। वह अभिनय भी कितना अच्छा था ? केजरीवाल नाटक ही सही अच्छा कर रहे हैं। और यह नाटक सभी दलों को
करना चाहिए। गंदी गंदी बात करने के बजाय अब अच्छी अच्छी ही बात करनी चाहिए.

यह देश ' बाँसूरीवादक ' का है ' बीनबादक ' का नहीं। बांसुरी जब बजती थी तो गोपियाँ निकलती थी,गायें निकलती थी। चारो ओर रस और रास थे ,रार नहीं थे। अभी चारो ओर बीन ही बज रहे हैं। बीन से विषधर बाहर आते हैं, सांप और बिच्छू ही निकलते हैं। पर इन बीनों के पास विषधर को वापस भेजने का तरकीब और क्षमता नहीं है।

अरविंद पर लगातार हमले हुए बावजूद उन्होंने अपना बड़प्पन नहीं खोया। लाली को घर जाकर माफ़ कर आया। इस प्रकार का अपमान मेरा हुआ होता तो मैं अबतक ' बीरप्पन ' हो गया होता।
आज भी मैं अरविंद के पसंदीदा अफसर से सचिवालय में बतियाता रहा। नौकरशाहों के टूटे दम्भ हमारे सामने थे। अकड़ में रहने वाले अधिकारियों की भाषा बदली हुयी थी। मैं मन ही मन अरविंद को साधुवाद देता रहा।
अरविंद अभी वाराणसी में हैं. लगातार अपनी भूलों को स्वीकार कर रहे हैं। अपने इस्तीफे देने के फैसले पर हुई गलती को स्वीकार करना उनकी अच्छी राजनीति का प्रतीक है।
अभी लगातार भगोड़ा कहकर अरविंद को अपमानित किया जा रहा है। भगोड़ा तो गांधी भी थे। कभी लौट कर अपने केंद्र की ओर नहीं गए। भारत छोडो आंदोलन और उसके पहले असहयोग आंदोलन को साथियों और देश की सहमति लिए विना वापस ले लेना गांधी की एक अलोकतांत्रिक प्रक्रिया कही जा सकती है। ऐसा ही अरविंद पर भी आरोप है। यह सीखने की बात है। गांधी लगातार अपनी ही बातों से मुकरते रहे। अंतिम सत्य मान कर किसी व्यवहार को विचार की संज्ञा नहीं दी। कृष्ण भी रणछोड़ थे। क्या भाजपा के लोग उन्हें भी 'भगोड़ा' कहेंगें ? केजरीवाल अगर भाजपा की कमाई हुई कलशी को लेकर फरार हुए होते तो एक आपराधिक कृत्य होता। अभी देश को अरविंद की जरूरत है । एक मजबूत सरकार के साथ साथ एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता है । अरविंद अगर बड़े उद्द्येश्य के लिए आगे भी भागने का काम करेंगें तो इस भगोड़े पर मुझे गर्व होगा। अरविंद किसी जगह ना जमे रहे तो अच्छा है। दुर्जन इधर उधर नहीं भागे,यह जरूरी है। भाग अरविंद भाग। .... और भाग। तुम जैसे भगोड़े पर गर्व है

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